मारवाड़ और बीकानेर में राठौड़ वंश का गौरवशाली इतिहास

 राठौड़ वंश का परिचय

राठौड़ वंश, एक प्रमुख राजपूत वंश, ने राजस्थान के उत्तरी और पश्चिमी हिस्सों में मारवाड़ (जोधपुर) और बीकानेर में अपना साम्राज्य स्थापित किया। "राठौड़" शब्द राष्ट्रकूट से आया है, जिसका अर्थ है "राष्ट्र का रक्षक"। कन्नौज से उत्पन्न, राठौड़ों का संबंध बंदायू वंश से है। उनकी विरासत में मेहरानगढ़ जैसे किले, सांस्कृतिक योगदान, और आक्रमणकारियों के खिलाफ वीरता शामिल है।


मारवाड़ की स्थापना: राव सीहा

मारवाड़ के राठौड़ वंश के संस्थापक राव सीहा थे, जो कन्नौज के जयचंद गहड़वाल के प्रपौत्र थे। उनके पिता कुंवर सेतराम ने सोलंकी वंश की पार्वती से विवाह किया था।

  • महत्वपूर्ण तथ्य: राव सीहा ने मारवाड़ में राठौड़ शासन की नींव रखी, जो जोधपुर की प्रमुखता का आधार बना।
  • विरासत: उनके वंशजों ने मंडोर और बाद में जोधपुर को केंद्र बनाकर शक्तिशाली राज्य बनाया।

मारवाड़ के प्रमुख शासक

राव चूड़ा राठौड़
  • शासनकाल: 14वीं सदी की शुरुआत
  • उपलब्धियाँ:
    • मंडोर को मारवाड़ की राजधानी बनाया।
    • सामंत प्रथा (जागीरदारी व्यवस्था) शुरू की।
    • नागौर के सूबेदार जल्लाल खाँ को हराकर चूड़ासर बसाया।
  • सांस्कृतिक योगदान: उनकी रानी चाँदकंवर ने चांद बावड़ी बनवाई।
  • विवाद: अपनी मोहिलाणी रानी के पुत्र कान्हा को उत्तराधिकारी बनाया, जिससे ज्येष्ठ पुत्र रणमल को वंचित किया।
  • उल्लेखनीय घटना: 1438 में मेवाड़ के सामंतों ने षड्यंत्र रचकर रणमल की हत्या कर दी।
राव जोधा (1438–1489)
  • शासनकाल: 1438–1489
  • उपलब्धियाँ:
    • 12 मई 1459 को जोधपुर शहर की स्थापना की और मेहरानगढ़ किला (मयूरध्वज/गढ़ चिन्तामणि) बनवाया।
    • किले की नींव करणी माता के हाथों रखी गई।
    • मेहरानगढ़ में चामुंडा देवी मंदिर बनवाया, जहाँ 2008 में दुर्घटना हुई, जिसकी जाँच जशराज चौपड़ा समिति ने की।
  • सांस्कृतिक टिप्पणी: लेखक रुडयार्ड किपलिंग ने मेहरानगढ़ को “परियों और अप्सराओं द्वारा निर्मित किला” कहा।
  • विरासत: उनके उत्तराधिकारी राव सातल और राव सूजा ने उनकी दृष्टि को आगे बढ़ाया।
राव गंगा (1515–1532)
  • शासनकाल: 1515–1532
  • उपलब्धियाँ:
    • खानवा के युद्ध में राणा सांगा की मदद के लिए अपने पुत्र मालदेव के नेतृत्व में सेना भेजी।
    • गंगलोव तालाब, गंगा बावड़ी, और गंगश्याम मंदिर बनवाए।
  • विरासत: मारवाड़ की सांस्कृतिक और सैन्य स्थिति को मजबूत किया।
राव मालदेव (1532–1562)
  • शासनकाल: 1532–1562
  • उपलब्धियाँ:
    • उदय सिंह को मेवाड़ का शासक बनाने में मदद की।
    • 1544 में शेरशाह सूरी के खिलाफ गिरी सुमेल का युद्ध (जैतारण) लड़ा, जिसमें हार का सामना करना पड़ा।
    • शेरशाह ने कहा, “मैंने मुट्ठी भर बाजरे के लिए हिंदुस्तान की बादशाहत खो दी।”
  • सांस्कृतिक टिप्पणी: उनकी पत्नी उमादे (रूठी रानी) जैसलमेर के राव लूणकरण की पुत्री थीं।
  • विरासत: इतिहासकार अबुल फजल ने उन्हें “हशमत वाला” शासक कहा।
राव चंद्रसेन (1562–1581)
  • शासनकाल: 1562–1581
  • उपलब्धियाँ:
    • मुगल सम्राट अकबर के प्रभुत्व का विरोध किया, जिसके लिए उन्हें “मारवाड़ का प्रताप” कहा गया।
    • “मारवाड़ का भूला-बिसरा नायक” के रूप में प्रसिद्ध।
  • उल्लेखनीय घटना: अकबर की सेना ने जोधपुर पर कब्जा कर लिया, लेकिन उन्होंने कभी अधीनता स्वीकार नहीं की।
महाराजा जसवंत सिंह प्रथम (1638–1678)
  • शासनकाल: 1638–1678
  • उपलब्धियाँ:
    • शाहजहाँ से “महाराजा” की उपाधि प्राप्त करने वाले जोधपुर के पहले शासक।
    • मुगल उत्तराधिकार युद्ध में दारा शिकोह के लिए धरमत (1657) में लड़े।
    • भाषा भूषण और अपरोक्ष सिद्धांत सार जैसे ग्रंथ लिखे।
  • सांस्कृतिक योगदान: उनके दरबारी मुहता नैणसी ने मारवाड़ री परगना री विगत और नैणसी री ख्यात लिखी, जिन्हें “मारवाड़ का अबुल फजल” कहा गया।
  • विरासत: 1678 में अफगानिस्तान के जमरूद में निधन।

बीकानेर में राठौड़ वंश की विरासत

राठौड़ वंश ने बीकानेर में भी एक साम्राज्य स्थापित किया, जिसकी स्थापना राव बीका, राव जोधा के पुत्र, ने 1465 में की।

राव बीका (1465–1504)
  • उपलब्धियाँ:
    • करणी माता के आशीर्वाद और नेरा जाट के सहयोग से बीकानेर की स्थापना की।
    • जोधपुर के राव सूजा को हराकर राजकीय चिह्न बीकानेर ले गए।
  • विरासत: उनके पुत्र नरो ने उत्तराधिकार संभाला।
राव लूणकरण (1504–1526)
  • शासनकाल: 1504–1526
  • उपलब्धियाँ:
    • दानशीलता के लिए प्रसिद्ध, बीठू सूजा ने उन्हें राव जैतसी रो छंद में “कलियुग का कर्ण” कहा।
    • 1526 में नारनौल के नवाब के खिलाफ युद्ध में वीरगति प्राप्त की।
  • सांस्कृतिक योगदान: उनकी दानशीलता की तुलना कर्ण से की गई।
राव जैतसी (1526–1541)
  • शासनकाल: 1526–1541
  • उपलब्धियाँ:
    • 1534 में बाबर के उत्तराधिकारी कामरान को भटनेर छोड़ने के लिए मजबूर किया।
    • 1541 में मारवाड़ के मालदेव के साथ पहोबा के युद्ध में वीरगति प्राप्त की।
  • विरासत: बीठू सूजा के राव जैतसी रो छंद में उनके युद्ध का वर्णन है।
राव कल्याणमल (1544–1574)
  • शासनकाल: 1544–1574
  • उपलब्धियाँ:
    • 1544 में गिरी सुमेल के युद्ध में शेरशाह सूरी की मदद की, जिसके लिए उन्हें बीकानेर का राज्य मिला।
    • 1570 के नागौर दरबार में अकबर की अधीनता स्वीकार की।
  • सांस्कृतिक योगदान: उनके पुत्र कवि पृथ्वीराज राठौड़ ने बेलि क्रिसन रूकमणी री लिखी, जिसे “पाँचवाँ वेद” कहा गया।
महाराजा रायसिंह (1574–1612)
  • शासनकाल: 1574–1612
  • उपलब्धियाँ:
    • अकबर ने “महाराजा” की उपाधि दी और जोधपुर का प्रभारी नियुक्त किया।
    • 1594 में जूनागढ़ किला का पुनर्निर्माण करवाया और रायसिंह प्रशस्ति लिखवाई।
    • रायसिंह महोत्सव और ज्योतिष रत्नमाला ग्रंथ लिखे।
  • विरासत: इतिहासकार मुंशी देवीप्रसाद ने उन्हें “राजपूताने का कर्ण” कहा।

किशनगढ़ के राठौड़

किशनगढ़, राठौड़ वंश का तीसरा राज्य, 1609 में जोधपुर के मोटा राजा उदयसिंह के पुत्र किशन सिंह ने स्थापित किया।

  • उपलब्धियाँ: सम्राट जहाँगीर ने यहाँ के शासकों को “महाराजा” की उपाधि दी।
  • प्रसिद्ध शासक: महाराजा सांवत सिंह, जो कृष्ण भक्ति में राजपाट छोड़कर वृंदावन चले गए और “नागरीदास” के नाम से प्रसिद्ध हुए।
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